WTO में चीन ने की भारत की शिकायत

 

 चीन की शिकायत से चर्चा में भारत की PLI योजना

WTO में औपचारिक व्यापार विवाद की शुरुआत, जानिए पूरा मामला


चर्चा में क्यों?

चीन ने भारत के प्रमुख विनिर्माण प्रोत्साहन कार्यक्रम (Production Linked Incentive – PLI) योजनाओं के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में औपचारिक शिकायत (Trade Dispute) दर्ज की है।
इस शिकायत ने भारत की उद्योग नीति को लेकर वैश्विक स्तर पर नई बहस छेड़ दी है। यह पहली बार हुआ है जब चीन ने भारत की किसी आर्थिक नीति को लेकर WTO (विश्व व्यापार संगठन) में औपचारिक शिकायत दर्ज की है। जिसका असर मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर और सेमीकंडक्टर जैसे उद्योगों पर अधिक पड़ सकता है।


क्या है विवाद?

चीन ने ऑटोमोबाइल और एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (ACC) बैटरी क्षेत्रों के लिए भारत की PLI योजनाओं को WTO के नियमों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है।

चीन का आरोप है कि भारत अपनी योजनाओं के तहत घरेलू मूल्य संवर्धन (Domestic Value Addition – DVA) का उपयोग कर वित्तीय लाभ (Subsidy) दे रहा है —
जैसे ACC बैटरियों के लिए 50% तक की सब्सिडी

WTO के नियमों के अनुसार, घरेलू सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देना या उसे शर्त बनाना प्रतिबंधित (Prohibited) है,
क्योंकि इससे घरेलू वस्तुओं को आयातित वस्तुओं पर अनुचित लाभ मिलता है।


WTO के SCM समझौते का संदर्भ

SCM (Subsidies and Countervailing Measures) समझौता WTO का एक प्रमुख प्रावधान है,
जो सदस्य देशों द्वारा दी जाने वाली सरकारी सब्सिडियों पर नियंत्रण रखता है।

इस समझौते में सब्सिडियों को दो भागों में बाँटा गया है —

  1. निषिद्ध सब्सिडी (Prohibited Subsidy): जो निर्यात प्रदर्शन या स्थानीय सामग्री पर आधारित हो।

  2. कार्रवाई योग्य सब्सिडी (Actionable Subsidy): जिन्हें WTO की विवाद निपटान प्रणाली के ज़रिए चुनौती दी जा सकती है।

इसके अलावा, WTO देशों को प्रतिपूरक उपाय (Countervailing Measures) लागू करने की अनुमति देता है,
ताकि सब्सिडी के कारण हुए नुकसान की भरपाई की जा सके।


TRIPS समझौते का उल्लेख

TRIPS (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights) समझौता
कॉपीराइट, पेटेंट और ट्रेडमार्क जैसी बौद्धिक संपदा अधिकारों के न्यूनतम मानक तय करता है।

दोनों समझौते — SCM और TRIPS
1 जनवरी 1995 को WTO द्वारा माराकेश समझौते (Marrakesh Agreement) के तहत लागू किए गए थे,
और इनका पालन सभी सदस्य देशों के लिए अनिवार्य है।


भारत का पक्ष

भारत का कहना है कि उसकी PLI योजनाएँ WTO नियमों का उल्लंघन नहीं करतीं,

बल्कि ये केवल घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से शुरू की गई हैं।

सरकार के अनुसार, इन योजनाओं का मकसद
विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना, आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) को सशक्त बनाना
और वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन (EV) निर्माण में भारत की भूमिका बढ़ाना है।


PLI योजना: एक नज़र में

श्रेणी विवरण
योजना का नाम  उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (Production Linked Incentive - PLI)
शुरुआत वर्ष 2021
अनुमानित बजट ₹25,938 करोड़
प्रमुख क्षेत्र ऑटोमोबाइल, एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (ACC), इलेक्ट्रिक वाहन (EV)
मुख्य उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, EV पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना, आयात निर्भरता घटाना
लाभार्थी मूल उपकरण निर्माता (OEMs), नई तकनीक वाले ऑटो घटक निर्माता


योजना के प्रमुख उद्देश्य

  1. भारत में घरेलू विनिर्माण मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देना।

  2. इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और निर्यात प्रतिस्पर्धा को मजबूत करना।

  3. आयातित घटकों पर निर्भरता कम करना।

  4. उच्च तकनीकी और स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित करना।


भारत बनाम चीन: दृष्टिकोण

दृष्टिकोण चीन भारत
मूल आरोप WTO नियमों का उल्लंघन, घरेलू उत्पादों को अनुचित बढ़ावा PLI केवल घरेलू उद्योग को मज़बूत करने का उपाय
प्रमुख लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में समान अवसर विनिर्माण और निवेश को प्रोत्साहन
संभावित असर व्यापारिक तनाव में वृद्धि भारत में निवेश और रोजगार के अवसर

निष्कर्ष

चीन की शिकायत ने भारत की PLI योजनाओं को अंतरराष्ट्रीय मंच पर केंद्र बिंदु बना दिया है।
जहाँ चीन इसे WTO नियमों का उल्लंघन मानता है, वहीं भारत का दावा है कि यह योजना केवल उद्योग प्रोत्साहन के लिए है।

अब देखना यह होगा कि WTO इस विवाद पर क्या रुख अपनाता है —
क्योंकि इसका असर न सिर्फ भारत–चीन व्यापार संबंधों, बल्कि वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन और टेक्नोलॉजी सेक्टर पर भी पड़ सकता है। 


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